...मिटा दो पुरानी लीक की टेक को,
खड़ी करो, नये विचारों की नई दीवार।
वरिष्ठ रचनाकार नंद चतुर्वेदी कमर मेवाड़ी के बारे में सही लिखते हैं - मनुष्य जिन परिस्थितियों में फंस गया है और जिनसे उन्हें निष्कृति पानी है वह इन कविताओं का कथ्य है।
जन-जीवन की विडंबनाओं और त्रास को कमर अपनी कविताओं में बराबर अभिव्यक्त करते चलते हैं -
जीवित रह पाना अब,
कितना कठिन हो गया है,
इस दिगम्बर संसार में...।
तेजी से बढ़ती आर्थिक विषमता को देखकर कवि चिंतित है। वह देखता है कि शहर के फुटपाथों पर, रंजो गम की , मातमी बरसात हो रही है और सारी खुशियां कुछ इमारतों में बंद हैं और कवि प्रतीक्षारत है जब इन इमारतों में बंद खुशियों की लाशों को शहर के चौराहों पर टांक दिया जाएगा। कवि आशा करता है कि एक दिन अवश्य, भुखमरी और बेकारी हमारे कंधों चढ़ शहर के बाहर हो जाएंगी। कमर की कविताओं में आम जन की पीड़ा को बारहा अभिव्यकित किया गया है। इनसे गुजरकर पाठक अपने समय की दुरभिसंधियों से अवगत होता है और उससे दो हाथ करने का साहस पाता है।