''मेरे लिए कुछ मत माँगना
मत करना अरदास मूक भगवानों के सामने
... धूप ही धूप माँगना मेरे लिए।''
दर्शन का जो वैज्ञानिक पक्ष है उसे भारतीय संदर्भों में उदात्त ढंग से कविताओं में लाते हैं रेवन्त और सत्ता के अहम को चुनौती देते उसकी सीमाएं बतलाते हैं -
''कि सारे समंदर किसी का
चुल्लूभर पानी हैं ...।''
कवियों के कवि शमशेर ने खुद को 'हिंदी और उर्दू का दोआब' कहा है। यह दोआब रेवन्त के यहां भी जगह बनाता उनकी भाषा को धार देता है -
''... अना की गिरहों वाली
शोहरतें, वज़ारतें, मोहब्बतें।
ये भार यहीं बिछुड़ जाना है ...।''
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